Saturday, November 27, 2010
चल साथी फिर चौपाल चलें..
चल साथी फिर चौपाल चलें..
तेरे कंचे फिर खनकेंगे
मेरा लट्टू फिर घूमेगा
और कबड्डी की पारी में
तन फिर मिटटी को चूमेगा..
उस केसरिया शाम का दामन
आ फिर थाम चलें,
चल साथी फिर चौपाल चलें..
कभी गुरुजी के डर से
कक्षायें हमने छोड़ी थीं,
उस आँगन की चाह में हमने
घर की राहें छोड़ी थीं,
कुछ कटी पतंगे लूटने फिर से
आ चल दौड़ चलें,
चल साथी फिर चौपाल चलें..
सुरजन काका की बाँहों में
सब तकलीफें बिसराते थे,
राजाओं और परियों की कहानी
सुनते सुनते सो जाते थे,
राग बसंती आल्हा गाथा
आ फिर सीख चलें,
चल साथी फिर चौपाल चलें..
उस आँगन की मिट्टी में
कुछ लम्हे हमने बोये थे,
जब पीछे छोड़ा था उनको
सिसकी ले ले वो रोये थे,
पके हुए उन लम्हों को
आ चल तोड़ चलें,
चल साथी फिर चौपाल चलें...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment