मृगतृष्णा
Tuesday, November 9, 2010
अनकहे जज़्बात
एकमुश्त, अनगिनत ख़याल उमड़े,
धडकनें तेज़ हुईं,
और दिमाग़ी तार आपस में उलझ गए,
जुबां ने साथ ना दिया,
हाथों ने कलम उठा ली
और उतार दिए सारे जज़्बात काग़ज़ पर,
देखा तो कुछ नज़्में
मेरी डायरी में अठखेलियाँ कर रहीं थीं..
1 comment:
Alpana Verma
November 9, 2010 at 12:51 AM
यूँ ही होता है नज़्म का जन्म!
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