मृगतृष्णा
Sunday, July 24, 2011
अक्श
आईने में अक्श मेरा
कुछ अन्जाना,
अधूरा सा लगता है..
दूसरों की नज़रों से
देखा है जो,
वो एक नहीं...
वहम के आलम में पड़े
शख्सियत के टुकड़ों को
जोड़ लूं,
शायद कोई मुक़म्मल पहचान मिले...
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)