कुछ रुकी हुई सी बातें,
और अनकहे अफ़साने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..
कुछ सुर थे बांस की बंसी पर,
कुछ एकतारे की तान पे थे,
जो राग अधूरे ठहरे थे,
वो वीणा की रुन्झान में थे..
ना जाने क्यों ये रुक सी गई,
जो कलम कभी दीवानी थी,
आवाज़ भी मेरी रूठ गई,
हर मौसम जो मस्तानी थी...
कुछ याद नहीं क्या भूल रहा,
शायद कुछ चला था गाने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..
और अनकहे अफ़साने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..
कुछ सुर थे बांस की बंसी पर,
कुछ एकतारे की तान पे थे,
जो राग अधूरे ठहरे थे,
वो वीणा की रुन्झान में थे..
ना जाने क्यों ये रुक सी गई,
जो कलम कभी दीवानी थी,
आवाज़ भी मेरी रूठ गई,
हर मौसम जो मस्तानी थी...
कुछ याद नहीं क्या भूल रहा,
शायद कुछ चला था गाने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteDhanyavaad khatri jii..
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