Wednesday, November 3, 2010

संगीत और श्रृंगार


जब मिलती थीं उनसे नज़रें
सातों सुर खिल जाते मन में,
जो अधकच्चे रह जाते थे
वो तड़पाते फिर सपनों में..
    इस मन पगले ने ढूँढा है
    तुमको हर कवि की कविता में,
    संयोग में वो रस मिला नहीं
    जो है वियोग की सरिता में.. 
तुम कभी कभी उस महफ़िल में
मुझको आवाज़ लगाती थी,
जैसे मन के सब तारों को
अपने सुर से झनकाती थी...
    अब वीणा को झंकार भी दो
    मैं भी कुछ राग लगाऊंगा,
    संगीत का दरिया बहने दो
    मैं डूब के तर हो जाउंगा...

6 comments:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  2. आपको और आपके परिवार को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !

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  3. बहुत सुन्दर!
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना

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  4. धन्यवाद.. आपके प्रोत्साहन से ही ये कलम चलती है.. आपको और आपको परिवार को भी दीपावली की हार्दिक बधाइयाँ..

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  5. वाह! बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
    दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

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  6. Dhanyavaad Vnadanaa ji..aapko bhi Deep Parv ki Hardik Shubhkamnaayen..

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