Thursday, March 24, 2011

तेरा अंदाज़




सावन में ये रस फुहार
मरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
हिमगिर कि चोटी पर चमके
पहली उजली सूर्यकिरण सा,
रखता तुझको सदा ही सुद्रढ़
जीवन की हर उठा पटक में,
निष्कंटक कर देता राहें
गर हो ये तेरे जीवन में..
जिसने है पहचान बनाई
उसे ना तुम खोना यारों,
अंदाज़ कहीं जो गुमा दिया
अंजाम बुरा होगा यारों...

5 comments:

  1. सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर रचना..

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  2. मरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
    हिमगिर कि चोटी पर चमके
    पहली उजली सूर्यकिरण सा,

    सुंदर शाब्दिक अलंकरण....

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  3. @ कैलाश सर, मोनिका जी, वंदना जी: शुक्रिया आपका..

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  4. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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