तेरा अंदाज़
सावन में ये रस फुहार
मरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
हिमगिर कि चोटी पर चमके
पहली उजली सूर्यकिरण सा,
रखता तुझको सदा ही सुद्रढ़
जीवन की हर उठा पटक में,
निष्कंटक कर देता राहें
गर हो ये तेरे जीवन में..
जिसने है पहचान बनाई
उसे ना तुम खोना यारों,
अंदाज़ कहीं जो गुमा दिया
अंजाम बुरा होगा यारों...
सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
ReplyDeleteहिमगिर कि चोटी पर चमके
पहली उजली सूर्यकिरण सा,
सुंदर शाब्दिक अलंकरण....
सुन्दर भाव्।
ReplyDelete@ कैलाश सर, मोनिका जी, वंदना जी: शुक्रिया आपका..
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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