Tuesday, March 1, 2011

पनाहगाह


विचार कभी
कलम कि डोर से छूटकर
बिछड़ जाते हैं..
कुछ नज़्में
मुकम्मल मुकाम कि तलाश में कभी
भटक जाती हैं..

कुछ ऐसों के लिए
पनाहगाह बनी
मेरी डायरी....
उनके मुकाम कि तलाश
जारी है..
किसी की हो तो ले लो..

6 comments:

  1. सुंदर कविता .. बाधाई

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  2. बहुत ही सुन्‍दर ।

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  3. वाह क्या बात है।

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  4. एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
    यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

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