Monday, December 6, 2010

ख़्वाहिशों के परिंदे


ख़यालों के जंगल में,
कुछ अहसासों ने
कोटर बना लिए..
और देखते ही देखते
सैकड़ों ख़्वाहिशों के परिंदों ने
वहां बसेरा कर लिया...

कभी विचारों की आंधी
और अहसासों की हलचल में,
परिंदों ने उड़ान भर ली..
ग़ुम हो गयी कुछ ख़्वाहिशें,
और कुछ के पर ज़ख़्मी हो गए..

आंधी शांत हुई तो..
फिर से उन कोटरों में
चहचहाहट गूँज रही है..
कुछ और परिंदों ने
अभी अभी
वहां बसेरा किया है...

4 comments:

  1. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले ..!

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  2. गज़ब की प्रस्तुति।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं है

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