Friday, September 24, 2010

"रे मन तू ले चल दूर कहीं.."


रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जब पंछी करे पुकार
तो नभ कर ले सोलह श्रिंगार,
जहाँ इन्द्रधनुष की छाया में
जग भर ले रंग हज़ार...

रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जहाँ अपनापन हो हर घर में
हर ईश्वर हो हर आँगन में,
जहाँ हर प्यासे राही के लिए
अमृत झलके सबके मन में..

रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जहाँ यौवन की हर आँधी में
मुश्किल पत्तों सी उड़ जाए,
और बड़े बुजुर्गों के हाथों में
मासूम सा बचपन खिल जाए...


रे मन तू ले चल दूर कहीं.......

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