Wednesday, September 29, 2010

अर्ज़ है..

अब क्या बतलाएं हाल-ए-दिल,
किस तरह जीया करते हैं,
कुछ यादें हैं कुछ लम्हों की,
बस उन्हें पीया करते है !!
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कुछ तंग से थे दिल, कुछ तंग से थे हम,
कुछ तंग थी वहां, गलियां वो इश्क की,
निकले जो ढूँढने, दिलवर सा खज़ाना,
जो ख़ाक सा मिला, उसे मुकद्दर समझ लिया !!
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देख लीं बहुत, हसीनाओं की महफ़िल,
लुट जाए जिसपे दिल, कोई ऐसा नहीं मिला,
अब डूबे रहते हैं, शबो-सहर शराब में,
ना अपनों से मुहब्बत है, ना दुश्मन से है गिला !!
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