Wednesday, September 1, 2010

यादों का पुलिंदा




तन्हाई में बैठे हुए अक्सर,
जेहन में कुछ ख्याल उभरते हैं
कुछ अधूरे और कुछ अटूट रिश्ते,
मन के खाली अशांत कौनों को
भरने लगते है..
और देखते ही देखते खुल जाता है
मेरी खोई हुई स्वप्ननगरी की
यादों का पुलिंदा !!!

इस पुराणी जर्जर पोटली के
फटे हुए कोनों से गिरती हैं
कुछ सहज सी सख्सियतें
देती थीं हर मोड़ और उलझनों भरे चौराहे पर
अपने भरोसे का सहारा...
कहते थे जिन्हें साथी हमकदम,
मेरी परछाई से भी वाकिफ थे...

आज समेट लेना चाहता हूँ
उन सारे लम्हों को
जो बिखरे पड़े हैं,
इस फटे और खुले हुए,
मेरी यादों के पुलिंदे से...............

5 comments:

  1. awesome_max :) :)
    fan to main khair already hun hi teri

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  2. इस पुराणी जर्जर पोटली के
    फटे हुए कोनों से गिरती हैं
    कुछ सहज सी सख्सियतें..

    WAAH, BAHUT KHOOB :)

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