Friday, October 15, 2010

ये मन आवारा पंछी


इस मन आवारा पंछी का,
हर डाल बसेरा होता है,
कभी तो मंज़िल पाता है,
पर कभी ये सब कुछ खोता है..
इस मन आवारा पंछी का, हर डाल बसेरा होता है...


क्यूँ भटक रहा उन गलियों में,
जो अँधेरी सुनसान सी हैं,
क्यूँ बात ये ऎसी पूछ रहा,
जो सबके लिए अनजान सी है,
जब ऐसे हों हालात तो क्या, कभी सवेरा होता है,
इस मन आवारा पंछी का, हर डाल बसेरा होता है...


कोई दर्द रहा होगा ऐसा,
हर वक़्त इसे तड़पाता है,
शायद कोई शख्स रहा होगा,
जो इसे बहुत ही भाता है,
उन भूली बिसरी यादों को जब, ढूँढने निकला होता है,
इस मन आवारा पंछी का, हर डाल बसेरा होता है...

2 comments:

  1. बेहतरीन पोस्ट .आभार !
    महाष्टमी की बधाई .

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