Monday, January 3, 2011

सर्द सुबह


उत्तर की सर्द सुबह,
आधी सोयी आधी जागी,
रजाई में गुडी हुई
पड़ी थी,
कुछ धुंध कुछ बादलों से,
फ़लक एक रुई के कारखाने सा लग रहा था,
मैंने,
आँगन में आकर
फ़लक को देखा,
तो
बादलों की रजाई के
किसी कोने से,
सूरज ने सर निकाला,

हल्की सी मुस्कराहट भरी धूप के साथ
नए साल की शुभकामनाएं दी,
और वो
नए समय का सूरज,
फिर से
अपनी बादलों की रजाई में,
सर छुपा के गुडी हो गया..
उत्तर की उस सर्द सुबह में.

4 comments:

  1. वाह! सर्द सुबह का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।

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  2. Dhanyavaad Vandana Ji.. Bas kuchh Thithurte hue bhaav nikal aaye the.. :)

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  3. वाह,
    बादल, रजाई, सूरज . . बहुत भीने-भीने एहसास !

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  4. @Shikha: yahi ahsaas ek kavita se mulaqaat karate hain.. :)

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