Thursday, April 12, 2012

फसल हसरतों की


ख़यालों ने ज़हन में
एक ज़मीं सी बनाई है,
हसरतों के बीज 
जो गिराए मैंने-
अहसासों ने बड़े अदद से
सींचा है उन्हें..
जिस्म ने,
लहू के कतरे कतरे से
खींचकर साँसें कुछ-
उग रहे नन्हे पौधों को 
बड़ी शिद्दत से पिलाई हैं..
अब फसल पकने का इंतज़ार है,
ये हसरतें भी-
लहलहायेंगीं,
रंग लायेंगीं कभी..

29 comments:

  1. बहुत सुंदर............

    आशा की फसल ज़रूर लहलहाएगी.................
    मीठे मीठे फलों से भर देगी दामन.......................

    अनु

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  2. हसरतें भी-
    लहलहायेंगीं,
    रंग लायेंगीं कभी.... ?
    जरुर .... अवश्य .... बेशक ....

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  3. मेहनत का फल अवश्य मिलता है....ब्रजेन्द्र जी,...

    आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...

    अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
    .
    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  4. अच्छी अभिव्यक्ति, बधाईयाँ !

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  5. बहुत सुन्दर,बधाई.

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  6. बहुत खूबसूरत ...कविता बार बार पढने को मजबूर करती है

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  7. अरे ये प्यारी रचना तो हमने कभी की पढ़ ली थी...और हमारा कमेन्ट भी नदारद है??????

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  8. अरे ये प्यारी सी रचना तो हम कभी की पढ़ चुके हैं.....और हमारा कमेंट भी नदारद है?

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  9. ज़रूर रंग लायेंगी .....!!!!

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  10. अरे हमारी टिप्पणियां तो खोज लाइए बिरजू जी...

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    1. sorry Anuji, thode din pahle blog ka url change kiya tha..usme shayad kahi gum ho gayi hongee. lautne ke liye dhanyvaad :)

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  11. बहुत सुंदर .... टिप्पणियाँ कभी कभी स्पैम में अटक जाती हैं ...

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    1. Abhaar SangitaJi..Abhi spam ki problem thik kar di hai.. :)

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  12. This comment has been removed by the author.

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