Sunday, September 11, 2011

तू और क़ायनात


उस रोज़ कहीं साहिल में,
दो लहरें 
टकरायीं थीं शायद..

उस रोज़ कहीं फ़लक पे,
दो तारे मिलकर
टूटे थे शायद..

उस रोज़ कहीं गुलशन में.
कोई भंवरा
दीवाना हुआ शायद..

क्योंकि उस रोज़
तेरी आग़ोश में मैंने,
सारी क़ायनात से 
मोहब्बत कर ली थी शायद..

6 comments:

  1. wah.........komal bhaavon ka sundar chitran.

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  2. सुन्दर अभिवयक्ति...

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  3. इस रचना में निहित भाव पसंद आए।

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  4. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    *************************
    जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

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  5. धन्यवाद.. आभार :)

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