Sunday, July 24, 2011

अक्श

आईने में अक्श मेरा
कुछ अन्जाना,
अधूरा सा लगता है..
दूसरों की नज़रों से 
देखा है जो,
वो एक नहीं...
वहम के आलम में पड़े
शख्सियत के टुकड़ों को
जोड़ लूं,
शायद कोई मुक़म्मल पहचान मिले...

3 comments:

  1. अपने अक्स को तलाशती पंक्तिया... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  3. धन्यवाद.. कैलाश सर, सुषमा जी :)

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