थोड़ा सा और जी लूँ
इन बेसब्री के लम्हों को,
लगता है
तू क़रीब से भी क़रीब आ गई ..
थोड़ा सा और जी लूँ
इन बेवक़्त लम्हों को,
लगता है
तू ही क़ायनात में समा गई ..
अब, सूरज भी तू, माहताब भी तू,
पतंगा भी तू और गुलाब भी तू ..
थोड़ा सा और जी लूँ
मेरी नींद के इन आख़िरी लम्हों को,
हकीक़त से रोशन सुबह में
आँख खुलने पर
दम घुटेगा फिर ..
इन बेसब्री के लम्हों को,
लगता है
तू क़रीब से भी क़रीब आ गई ..
थोड़ा सा और जी लूँ
इन बेवक़्त लम्हों को,
लगता है
तू ही क़ायनात में समा गई ..
अब, सूरज भी तू, माहताब भी तू,
पतंगा भी तू और गुलाब भी तू ..
थोड़ा सा और जी लूँ
मेरी नींद के इन आख़िरी लम्हों को,
हकीक़त से रोशन सुबह में
आँख खुलने पर
दम घुटेगा फिर ..
y0 birju :D
ReplyDelete:D
Deleteख्वाब कभी सच भी होंगे...
ReplyDeleteमकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अनु
भावमय करते शब्द ....
ReplyDeleteUnda nazm birji :)
ReplyDeleteSuyash.....kahan ho sirjii...?
DeleteMumbai re...email me ur contact number.
Delete