Thursday, July 23, 2009

मैं अपरिचित


आज होकर इस जहाँ से, जा रहा हूँ मैं अपरिचित,
जब जिया तब था अपरिचित , ख़ुद से और संसार से ।

जिस ज़मीं को जानता था , जिस धरम को मानता था ,
चाहता था मैं जिन्हें वो लोग भी अब हैं अपरिचित ।

अग्नि धरा आकाश से , वायु और जल की प्यास से ,
था बना कण कण जो मेरा , आज वो कण भी अपरिचित ।

मिट्टियों में खेलता था , उघरे बदन मैं दौड़ता था ,
कल्पनाओं का समंदर , आज वो बचपन अपरिचित ।

माँ की ममता ने सिखाया , गुरुजनों ने भी बताया ,
ढाई अक्षर से बना , वो प्रेम भी अब है अपरिचित ।

भूल और संज्ञान में , जो किए मैंने करम ,
उनका फल ले कर जहाँ से, जा रहा हूँ मैं अपरिचित ।

कल मरना मुझे गंवारा है



आज सुहानी सुबह हुई, सूरज का बुलंद सितारा है ,
मस्त हवा के झोंके ने, हर वृक्ष का बदन उघारा है ,
ऐसे मस्ती के मौसम में, जब साथ तुम्हारा प्यारा है,
आज बचा लो यारो, कल मरना मुझे गंवारा है !!

हर फूल की बाहें खुली हुई, भंवरों की दीवानी हैं ,
हर पत्ती पत्ती खिली हुई, मौजों की अलग कहानी है ,
दूर क्षितिज पर आज किसी ने , मल्हारी राग पुकारा है ,

आज बचा लो यारो, कल मरना मुझे गंवारा है !!

ज़र्रे ज़र्रे मैं जीवन है , महका मिट्टी का हर कण है ,
दिन चला शाम से मिलने को , बढती उसकी हर धड़कन है ,
उनके मिलन के इन्द्र धनुष को , प्रकृति ने सजा संवारा है ,
आज बचा लो यारो, कल मरना मुझे गंवारा है !!

मदमस्त समय के जाने पर , अब रात सुहानी आई है ,
आकाश से बादल चले गए , तारों की महफ़िल छाई है ,
मन करता है चला जाऊ इनमे , चंदा ने डोल उतारा है ,
खो जाऊँ गर तारों में , ऐसा अंत भी मुझको प्यारा है !!

आज कलम उठ जाने दो !!



कई दिनों से सोये मन में
आज लहर बह जाने दो ,
गहन विचारों के मंथन में
आज कलम उठ जाने दो !!

मुझे साज़ का ज्ञान नही है
स्वर लहरों का भान नही है
किंतु म्रदंगी की थापों पर
आज कदम उठ जाने दो ,
गहन विचारों के मंथन में
आज कलम उठ जाने दो !!

अंतर्मन के कोलाहल में
सुलगालो एक चिंगारी
फ़िर उस चिंगारी के ऊपर
आज पवन बह जाने दो ,
गहन विचारों के मंथन में
आज कलम उठ जाने दो !!