Monday, January 14, 2013

थोड़ा सा और जी लूँ

थोड़ा सा और जी लूँ 
इन बेसब्री के लम्हों को,
लगता है 
तू क़रीब से भी क़रीब आ गई ..
थोड़ा सा और जी लूँ 
इन बेवक़्त लम्हों को,
लगता है 
तू ही क़ायनात में समा गई ..
अब, सूरज भी तू, माहताब भी तू,
पतंगा भी तू और गुलाब भी तू ..

थोड़ा सा और जी लूँ 
मेरी नींद के इन आख़िरी लम्हों को,
हकीक़त से रोशन सुबह में 
आँख खुलने पर 
दम घुटेगा फिर ..

7 comments:

  1. ख्वाब कभी सच भी होंगे...

    मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    अनु

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  2. भावमय करते शब्‍द ....

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