मृगतृष्णा
Monday, May 21, 2012
काली गठरी रात की
वो गुज़री शाम का दामन
पकड़कर रात आयी है,
उजाले के टुकड़े
बचे हुए कुछ
पड़े थे ज़मीन पर,
समेटने उन्हें
ये काली गठरी लिए आयी है..
गुजारिश है तुझसे
ऐ शब् !!
ज़रा झलका दे ये गठरी
गिरा दे एक टुकड़ा
उजाले का मेरे दिल में,
अरसे से वहां
अँधेरे बहुत हैं...
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