यादों का मल्हम
ये तितलियाँ हैं
या बुलबुलों मैं क़ैद रंग,
अंतसपटल पे बने
मेरे बचपन के चित्रों में
नए रंग भरते हुए
इधर से उधर
तैर रहे हैं हवा में..
और मैं उसी मासूमियत से
उनके पीछे खुली हथेली लिए
भाग रहा हूँ..
सोने दो
बचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सोने दो
ReplyDeleteबचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..सच है बचपन की यादें जीवन भर साथ नहीं छोडतीं..
सोने दो
ReplyDeleteबचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..
बहुत सुंदर लिखा आपने.... बचपन की बेफिक्री कहाँ मिलती है ....... मासूम भाव लिए गहन अभिव्यक्ति.....
बचपन की यादे ...हाय
ReplyDeleteबचपन की अमित यादों की मासूम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति । कई बार ऐसा लगता है कि बचपन कि तरफ लौट चलें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteशुक्रिया हौसला अफज़ाई का.. :)
ReplyDeleteवाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
Dhanyavaad Bhaskar Bhai... :)
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