Sunday, May 15, 2011

यादों का मल्हम



ये तितलियाँ हैं
या बुलबुलों मैं क़ैद रंग,
अंतसपटल पे बने
मेरे बचपन के चित्रों में
नए रंग भरते हुए
इधर से उधर
तैर रहे हैं हवा में..
और मैं उसी मासूमियत से
उनके पीछे खुली हथेली लिए
भाग रहा हूँ..
सोने दो
बचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..

13 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (16-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. सोने दो
    बचपन की यादों के बिस्तर पे..
    आज का ग़म भुलाना है..

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..सच है बचपन की यादें जीवन भर साथ नहीं छोडतीं..

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  3. सोने दो
    बचपन की यादों के बिस्तर पे..
    आज का ग़म भुलाना है..

    बहुत सुंदर लिखा आपने.... बचपन की बेफिक्री कहाँ मिलती है ....... मासूम भाव लिए गहन अभिव्यक्ति.....

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  4. बचपन की अमित यादों की मासूम अभिव्यक्ति

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  5. वाह बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । कई बार ऐसा लगता है कि बचपन कि तरफ लौट चलें । धन्यवाद ।

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  7. शुक्रिया हौसला अफज़ाई का.. :)

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  8. वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई

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  9. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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