Sunday, October 23, 2011

वक़्त और किस्से


किस्से..सुने थे,
कुछ पढ़े थे,
कुछ से हुआ था रू ब रू,
तो कुछ को जी रहा हूँ...
ये किस्से ईंधन हैं,
इन्हीं से वक़्त चलता है..
इस वक़्त के सफ़र के अगले पड़ाव तक-
मैं भी ईंधन बनूँगा,
मैं भी...
एक किस्सा बनूँगा...
कोई सुनेगा, कोई पढ़ेगा...
कोई जीएगा मुझे भी...