किस्से..सुने थे,
कुछ पढ़े थे,
कुछ से हुआ था रू ब रू,
तो कुछ को जी रहा हूँ...
ये किस्से ईंधन हैं,
इन्हीं से वक़्त चलता है..
इस वक़्त के सफ़र के अगले पड़ाव तक-
मैं भी ईंधन बनूँगा,
मैं भी...
एक किस्सा बनूँगा...
कोई सुनेगा, कोई पढ़ेगा...
कोई जीएगा मुझे भी...
मैं भी...
ReplyDeleteएक किस्सा बनूँगा...
कोई सुनेगा, कोई पढ़ेगा...
कोई जीएगा मुझे भी...बहुत अच्छी पंक्तिया....
ये किस्से ईंधन हैं,
ReplyDeleteइन्हीं से वक़्त चलता है..
waah... b'ful thought !!
बस यही है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा।
ReplyDeletejindagi aisi hi hai
ReplyDeletebehtreen
धन्यवाद.. :)
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ReplyDelete♥
प्रिय बंधुवर बृजेन्द्र सिंह जी
सस्नेहाभिवादन !
मैं भी ईंधन बनूँगा,
मैं भी...
एक किस्सा बनूँगा...
कोई सुनेगा, कोई पढ़ेगा...
कोई जीएगा मुझे भी...
कमाल की रचना लिखी है … मन से बधाई !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्नेह के लिए आपका आभार राजेंद्र जी..
ReplyDeleteaap kaafi accha likhte hain ..badhai :)
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