Saturday, June 18, 2011

दर्द के ख़ाते


कुछ हिसाब सा बाकी है
दर्द के ख़ाते में..
कुछ बक़ाया है,
कुछ गिरवी है किसी का
मेरे पास...
ये ख़ाते-
खुले में रखता हूँ,
कोई चुराता नहीं..
ना गलते हैं,
ना जलते हैं,
रूह से जुड़कर
रूह बन गए हैं..
ये ख़ाते अब ख़त्म ना होंगे,
क्योंकि-
कुछ हिसाब सा बाकी है अभी....

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. खुले में रखता हूँ,
    कोई चुराता नहीं..
    ना गलते हैं,
    ना जलते हैं,
    रूह से जुड़कर
    रूह बन गए हैं......

    Bahut hi Sunder panktiyan.....

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  3. बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति..

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