कुछ हिसाब सा बाकी है
दर्द के ख़ाते में..
कुछ बक़ाया है,
कुछ गिरवी है किसी का
मेरे पास...
ये ख़ाते-
खुले में रखता हूँ,
कोई चुराता नहीं..
ना गलते हैं,
ना जलते हैं,
रूह से जुड़कर
रूह बन गए हैं..
ये ख़ाते अब ख़त्म ना होंगे,
क्योंकि-
कुछ हिसाब सा बाकी है अभी....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebhut bhut gahri abhivakti...
ReplyDeleteखुले में रखता हूँ,
ReplyDeleteकोई चुराता नहीं..
ना गलते हैं,
ना जलते हैं,
रूह से जुड़कर
रूह बन गए हैं......
Bahut hi Sunder panktiyan.....
बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआभार आपका.. :)
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