कुछ चीखें सुनाई देती हैं ..
कौन है कमबख्त
जिसकी चीखों में
मुझे कुछ दर्द
कुछ डर सा
महसूस होता है ...
थोडा गौर से देखता हूँ
तो खुद को
सोकर मरे पड़े
इंसानों के
घायल ख्वाबों के बीच पाता हूँ ..
इनके घाव
भरी चांदनी की
तेज चमक में
ना जाने क्यूँ
दिखाई नहीं दिए कभी ..
आज इस पूरे चाँद की
अधूरी चांदनी में
इन घायल ख्वाबों से
रिसता लहू
फिजां के रंग को
लाल किये हुए है ..
और इस रंग में डूबती मेरी रूह
चीख रही है-
किसी हक़ीम के लिए ......