Friday, February 18, 2011

तजस्सुम



एक नज़्म की तजस्सुम है...

माहताब से दरिया तलक
सारे किरदार कुरेद लिए,
ज़मीं में सोये कुछ के
कुतबे भी पढ़े,
मुज्तरिबी का आलम
बरकरार है फिर भी...

आज फिर,

एक नज़्म की तजस्सुम है...


5 comments:

  1. Ye to hamne pahli baar padhi hai :(

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  2. वाह ! बिरजू जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

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  3. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  4. @Bhaskar Ji- Silsile kahatam nahin honge..meri nazm aapko kheench layegi.. Dhnayavaad Tareef ka..aapka protsaahan rahega to ye kalam zinda rahegi.. :)

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