Thursday, February 25, 2010

बंदिशें (नज़्म)



लफ्ज़ बाहर आने को मचलते हैं,
हर ख़याल के साथ, तस्वीरों से उभरते हैं,
बंदिशें लगाती है ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ,
हर बार ये बावरे बोल हलक से निकलते हैं,
"
एक बार तो मुझे अपने ख़यालों के साथ फुर्सत में बैठने दो॥"...

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