
ये तितलियाँ हैं
या बुलबुलों मैं क़ैद रंग,
अंतसपटल पे बने
मेरे बचपन के चित्रों में
नए रंग भरते हुए
इधर से उधर
तैर रहे हैं हवा में..
और मैं उसी मासूमियत से
उनके पीछे खुली हथेली लिए
भाग रहा हूँ..
सोने दो
बचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..