
..आधे रंग उड़कर
चिट्टे हुए जाते हैं,
तस्वीर तेरी मेरे ज़ेहन में
ग़ायब होने को है..
..ना जाने कितने लम्हे
गुज़रे तेरी दीद को,
ज़ून भरी हर रात यहाँ
काली होने को है...
..इस आलम में तू आये
तेरी मेहर होगी,
वरना ये शख्सियत भी मेरी
चिट्टी होने को है...
मायने:
चिट्टा- सफ़ेद, ज़ून- चांदनी

सावन में ये रस फुहार
मरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
हिमगिर कि चोटी पर चमके
पहली उजली सूर्यकिरण सा,
रखता तुझको सदा ही सुद्रढ़
जीवन की हर उठा पटक में,
निष्कंटक कर देता राहें
गर हो ये तेरे जीवन में..
जिसने है पहचान बनाई
उसे ना तुम खोना यारों,
अंदाज़ कहीं जो गुमा दिया
अंजाम बुरा होगा यारों...
यूँ ही ठहाकों में गुज़री ज़िन्दगी
तो क्या गुज़री...
कभी ग़म में भी कटे दिन,
तो जायका बदले.
नज़ारा हर रोज़ आसमां का,
चाँद भी बदलता है..
अमावस का अँधेरा तो जी लूँ,
फिर पूनम का गुलशन खिले,
तो समां बदले...
विचार कभी
कलम कि डोर से छूटकर
बिछड़ जाते हैं..
कुछ नज़्में
मुकम्मल मुकाम कि तलाश में कभी
भटक जाती हैं..
कुछ ऐसों के लिए
पनाहगाह बनी
मेरी डायरी....
उनके मुकाम कि तलाश
जारी है..
किसी की हो तो ले लो..