मृगतृष्णा
Sunday, February 5, 2012
टूटती डोर..जुड़ती डोर
सुतली जो बांधी थी तूने
किवाड़ की सांकल पे
वो टूट गयी कल..
जो पेड़ लगाया था
पखवाड़े में हमने
अमरबेल ने सुखा दिया..
हर याद पे तेरी,
बिजली गिरी है..
अब तो बस
दिल मे तेरी तस्वीर मुक़म्मल है,
लगता है
वहां भी क़यामत होगी..
अब जल्दी ही मिलूंगा तुमसे सनम!!
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