ये उजला सा अँधेरा क्यूँ है,
फलक जगमगा रहा है
अमावस की रात की तरह,
मगर क्यों कोई तारा नहीं टिमटिमा रहा,
बस कुछ अजीब सी बुलबुलों जैसी आकृतियाँ,
जैसे किसी पेशेवर चित्रकार ने
तमाम ज्योमेट्री का ज्ञान एक स्याह कागज़ पे उड़ेल दिया हो,
एक दूसरे से टकराकर, इधर उधर भाग रही हैं,
जिसको देखने की कोशिश करो,
वो दुगुनी तेज़ी से उसी दिशा में भाग जाती है..
सोच रहा हूँ कोई सपना है,
मगर मैं सोया नहीं हूँ..
ज़रा हटा तो अपनी जुल्फों के बादल,
हकीक़त का सूरज देखना है....