Thursday, February 25, 2010

बंदिशें (नज़्म)



लफ्ज़ बाहर आने को मचलते हैं,
हर ख़याल के साथ, तस्वीरों से उभरते हैं,
बंदिशें लगाती है ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ,
हर बार ये बावरे बोल हलक से निकलते हैं,
"
एक बार तो मुझे अपने ख़यालों के साथ फुर्सत में बैठने दो॥"...

Thursday, February 11, 2010

घरोंदा


बारिश की हल्की बौछारों से,
लगी महकने गीली मिट्टी,
पाँव के ऊपर उसे लगाकर,
मैंने थापा एक घरोंदा,
भोलू से अच्छा मोनू से प्यारा,
सबसे सुन्दर मेरा घरोंदा॥

टूटी चूड़ी के टुकड़ों से उसे सजाया,
रंग बिरंगे धागों का घेर बनाया,
गोल गोल से छोटे पत्थर से,
चुन्नू, मुन्नी और माँ को बनाया,
अपने भोले सपनों से सजाकर,
मैंने थापा प्यारा घरोंदा॥

मौसम बीते बरस बीते,
और जीवन की भाग दौड़ में,
ना जाने कितने सपने बीते,
हर सपने को बुनियाद बनाकर,
मैंने जोड़ा एक शीशमहल॥

आज समय की आँधी में,
खो गए वो भोले सपने,
शीशमहल की आड़ में जो छुप गए,
चुन्नू, मुन्नी और माँ थे॥
आज में अपने शीशमहल में,
ढूँढ रहा हूँ वही घरोंदा,
अपने भोले सपने से सजाकर,
मोनू से अच्छा, भोलू से प्यारा,
मैंने थापा था जो घरोंदा॥