Friday, October 22, 2010

- क़लम और चांदनी -

देर कर दी आज,
चाँद ने उफ़क से उठने में,
पूछना था मुझे-
की ऐसा क्या है उसकी शफ्फाक चांदनी में,
जो दिन के सारे ग़मों को छानकर
मेरी क़लम की आहट को
ख़ुशनुमा कर देती है..
और
हर नज़्म इसमें धुलकर,
शब के अँधेरे अहसास को-
बहा ले जाती है..

आज चाँद ने उठने में देर कर दी,
क्योंकि,
आज मेरी क़लम ने-
ग़म और उदासी भरा दरिया बहाया है....

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